कुछ बूँद ज़िन्दगी
गवा दी हमने
ज़रुरत से ज़्यादा
ज़रुरत के नाम पे
अगर सोचें ज़रा

ब्रश करते रहे
साबुन मलते रहे
छई छप छई
एक बारी में टंकी 
खाली हो गयी भला

धोये हमने भरतन
गाड़ियां भी धुलती रही
धुले रोज़ बरामदे 
पानी की नालियां बनती रही
जो चाहते हम तो 
खिला सकती थी बगीचा हरा-भरा

स्कूलों में देखो
देखो अस्पतालों में
अगर फिर भी न भरा हो मन
तो कारखानों में झांकना
कैसे घोट रहे पानी का गला

जो हिमनद थे 
वह पिघलते जा रहे
जो सरोवर हैं 
अपनी गति अनुसार 
ज़मीं में धस गए सदा 

कुछ बूँद ज़िन्दगी
तोहफे में मिली थी
बहकर रह गयी 
मानो बाप-दादा की
दी हुई जागीर हो भला

कुछ बूँद ज़िन्दगी
पर उनका भी हक़ है
जो पानियों की चोटी पे बैठे हुए
पर नहीं उडाया उन्होंने
जैसे हमने उड़ाया पानी का मज़ा

उन्होंने शहरों के अक्स नहीं देखे
नहीं देखा उन्होंने पानी के गिलास का 
बार बार भरना, 
चाहे प्यास न हो
पर हमारे स्टेटस का झलकना 

कुछ बूँद ज़िन्दगी
गवा दी हमने 
क्यूंकि अहमियत नहीं समझी हमने
नहीं हुआ एहसास, के खो देना 
होगी एक दर्दनाक सजा 

कुछ बूँद ज़िन्दगी
अभी लेकिन बाकी है
तुम कहो तो
तिनका-तिनका 
भर लें ज़रा

कुछ बूँद ज़िन्दगी 
तुम्हारी भी है
कुछ बूँद ज़िन्दगी 
हमारी भी है
आ मिलकर भरलें 
अपने जीवन का घड़ा