Fursat
बहुत भीड़ लगी है आजकल जगह-जगह, हर जगह सब व्यस्त से मालूम होते हैं गुज़र बसर जुगाड़ रहे शायद क्या करें भाई? यह इक्कसवीं सदी है यहाँ सपनों का बाजार लगा है सब उसी कारोबार में व्यस्त हैं शायद बहुत भीड़ जमा है…
Scar(r)ed
Can you give me something that is more intoxicating than you are, and maybe I will have something else running in my nerves! For now, I am scared and scarred for my life that no one lives and sigh they only breathe for a…
गुज़र रही है ज़िन्दगी
गुज़र रही है ज़िन्दगीकुछ उलझतीकुछ सुलझतीथोड़ी चढ़तीथोड़ी उतरती गुज़र रही है ज़िन्दगीथोड़ी मीठीथोड़ी नमकीनथोड़ी सी ज़ालिमथोड़ी सी हसीन गुज़र रही है ज़िन्दगीथोड़ी उदासथोड़ी मुस्कुरातीथोड़ी बुझी बुझीथोड़ी जगमगाती गुज़र रही है ज़िन्दगीथोड़ी मनचलीथोड़ी इतरातीथोड़ी मेरे मन सीथोड़ी इठलाती गुज़र रही है ज़िन्दगीकुछ ठहरी सीकुछ बहती सीकुछ…
Chhat (छत)
Chhat (The Roof) is a poem on our long lost relationship with the roof our houses. Yet everytime we head back home, the roof anxiously waits for us to get back to it and narrate all our stories that conspires in the city.
The Optimistic Me
The Optimistic Me is third in the series of poem dedicated to the book The End. The End is a story of suffering, healing, of losing and finding oneself amidst the pandemic times. The Cautious Me The Sceptic Me The Optimistic Me The world stood…
100 gm सुकून
१०० ग्राम सुकून भी काफी होता ज़िन्दगी गुज़ारने के लिए सब कुछ था पर बस सुकून ही न मिला पल दो पल के लिए हर रात रोशन था आसमान उस चाँद की चांदनी के दरम्यान पर मेरी आँखों से गायब है जो नींद ऐ…
Part II – The Skeptic Me!
This is Part II in the series of three reflecting the times we are living through: The Cautious Me The Skeptic Me The Optimistic Me Tomorrow,When all of this is overMaybe we do notFall into oblivionAs ifNothing happenedNothing matteredNothing camenothing conqueredThere was nothingWhat got us…
Part I – The Cautious Me!
I wrote this during the times of COVID-19! Yes, COVID-19 is a virus that grappled the world. Originated in China, the virus traveled far and wide calling for worldwide shutdowns and lockdowns. People were forced to lock themselves up to prevent the infection, businesses were…
Kahwa (कहवा)
अर्सों हो गए एक कप गरमा-गरम कहवा पिए हुए,उस अंगीठी के आगे-पीछे बैठे हुएऔर अपने दिलों को हल्का किये हुए! वो कहानियां भीन जाने कहाँ गुम सीहो गयी,जिन्हें कहवे के घूंट संग पीते थेमानो वह चीनी से नमक हो गयी! उस कहवे में क़ैद दिलों की गर्माहट थीअब तो जैसे…
Kuch boond zindagi
कुछ बूँद ज़िन्दगीगवा दी हमनेज़रुरत से ज़्यादाज़रुरत के नाम पेअगर सोचें ज़रा ब्रश करते रहेसाबुन मलते रहेछई छप छईएक बारी में टंकी खाली हो गयी भला धोये हमने भरतनगाड़ियां भी धुलती रहीधुले रोज़ बरामदे पानी की नालियां बनती रहीजो चाहते हम तो खिला सकती थी बगीचा हरा-भरा स्कूलों…