कुछ बूँद ज़िन्दगीगवा दी हमनेज़रुरत से ज़्यादाज़रुरत के नाम पेअगर सोचें ज़रा ब्रश करते रहेसाबुन मलते रहेछई छप छईएक बारी में टंकी खाली हो गयी भला धोये हमने भरतनगाड़ियां भी धुलती रहीधुले रोज़ बरामदे पानी की नालियां बनती रहीजो चाहते हम तो खिला सकती थी बगीचा हरा-भरा स्कूलों…