गुज़र रही है ज़िन्दगी
कुछ उलझती
कुछ सुलझती
थोड़ी चढ़ती
थोड़ी उतरती
गुज़र रही है ज़िन्दगी
थोड़ी मीठी
थोड़ी नमकीन
थोड़ी सी ज़ालिम
थोड़ी सी हसीन
गुज़र रही है ज़िन्दगी
थोड़ी उदास
थोड़ी मुस्कुराती
थोड़ी बुझी बुझी
थोड़ी जगमगाती
गुज़र रही है ज़िन्दगी
थोड़ी मनचली
थोड़ी इतराती
थोड़ी मेरे मन सी
थोड़ी इठलाती
गुज़र रही है ज़िन्दगी
कुछ ठहरी सी
कुछ बहती सी
कुछ बासी
कुछ ताज़ी सी
अटकी पड़ी है ज़िन्दगी
शायद किसी ख्याल पे
मगर साल, हफ़्तों और दिनों में
ज़रूर गुज़र रही है ज़िन्दगी
Karanvir
Karanvir is an author/poet, lyricist and creator of thebuswindow. He loves staying closer to the mountains, and sipping Chai while he scribbles his #randomthoughts. He is an environmentalist at heart, loves plating trees and does every bit to keep the surroundings clean. His work includes a self-published book titled The End, available on Amazon India and worldwide. He has contributed to anthology People Called Kolkata (published by Penguin). He loves to spend time with the children and youth listening to their ideas, innovation and thoughts.