Few years back, we had left our homes in pursuit of newer and bigger things, achievements we called them then, compulsions we may call them now, if so? But we left behind the lanes, that do not call us back.
We never knew we would leave those lanes (narrow howsoever they were) for broader pathways that are suffocating but not liberating enough like those. Those lanes gave us enough to make memories and these broadways take enough from us to recall those memories.
Today when we stand at almost No U turn zone and getup from time to time to look back and wave a hand just to realise that not even the time (of the past) recognises us now. There are insane shades of colours left in the imagery drawn in our heads – protecting us enough from the void that surrounds us all the time to gulp us down. 
नहीं पता था, घर वापसी एक हैशटैग बनकर रह जायेगा
Some random lane back home in Jammu
कुछ गलियां हमें क्यों नहीं बुलाती 
क्या उन्हें हमारी याद नहीं तरसाती

कुछ गलियां हमें क्यों नहीं बुलाती

हम तो बस युहीं निकले थे पल दो पल के लिए

पलट कर देखा तो ढून्ढ लिए थे उन्होंने कईं नए साथी
पूछता हूँ खुद से तन्हाइयों में अक्सर
क्या उन्हें हमारी याद कभी नहीं तरसाती 
 
भागे थे उन गलियों में खोजने वो चोर रास्ते
वो अखियों से फिर कईं तीर लगाना 
और हवा के जैसे हम गुम से हो जाते 
अगले दिन अखियों का हमें वहां खींच के लाना
याद जो छू जाये ज़रा सी तो दिल हमारे आज भी धड़क जाते
 
कुछ गलियां हमें क्यों नहीं बुलाती 
क्या उन्हें हमारी याद नहीं तरसाती
 
बीता बचपन गोद में उनकी 
और वहीँ पे लगे जवानी के तड़के
भूली बिसरि बातें भी उनकी 
और वहीँ मिले सचाई के झटके
लाख कोशिशें करले शहर, कमी न पूरी होगी उनकी 
 
गजब सी गहरी है यारी हमारी
गिरते देखा, गिरकर उठना भी सिखाया 
दफ़न की इनमें हमने कहानिया सारी
पर इक मोड़, इक खड्डा भी हमें रोक न पाया 
जब आयी हमारी निकलने की बारी 
 
 
 
कुछ गलियां हमें क्यों नहीं बुलाती 
क्या उन्हें हमारी याद नहीं तरसाती
 
आज अर्सों हुए उन्हें आहट सुने हमारी
अर्सों हो गए हमें भी उनसे किये गुफ्तगू 
अब देती हैं दस्तक यादें ढेर सारी 
बीत गयी कईं रातें याद में उनकी 
जहाँ बुनी थी हमने अपने सपनों की गाडी 
 
तुम लौट के आना कल, बनके साथी 
शोर से अपने भर देना जो मन का घाव है हमारा
फिर वही रातें होंगी और बातें कईं सारी 
वादा है हमारा भूले से भी कदम न उठेगा हमारा
ठहाकों से गूंजेंगी फिर वह गलियां सारी 
 
कुछ गलियां हमें क्यों नहीं बुलाती 
क्या उन्हें हमारी याद नहीं तरसाती