अर्सों हो गए
एक कप गरमा-गरम
कहवा पिए हुए,
उस अंगीठी 
के आगे-पीछे बैठे हुए
और अपने दिलों 
को हल्का किये हुए!

वो कहानियां भी
न जाने कहाँ गुम सी
हो गयी,
जिन्हें कहवे के घूंट 
संग पीते थे
मानो वह चीनी 
से नमक हो गयी!

उस कहवे में 
क़ैद दिलों की गर्माहट थी
अब तो जैसे सदा के लिए
ठंडी हो गयी!
जो जितने भी दूर होते थे
उन्हें वो पास ले आती थी,
इक कहवे की खुशबू
जो सब को बांध ले आती थी,
वह खुशबू भी 
जैसे फुर सी हो गयी!

न जाने कब अपनों में 
ही दूरी सी हो गयी!
ज़िन्दगी थम सी जाती थी
उस एक कप कहवे में
अब तो कईं प्यालों में जाकर
छल छल सी हो गयी!


अर्सों हो गए एक कप
गरमा-गरम कहवा पिए हुए
अपनों के संग बैठकर 
अपने दिल की कोई बात किये हुए!
कभी कहवा एक हकीकत था
हमारी ज़िन्दगियों का
अब एक मीठी याद बनकर रह गया
जब ज़िन्दगी से पहचान जो हो गयी!